आखिर क्यों हमारे देश को भारत, इंडिया और हिंदुस्तान के नाम से जाना जाता है ?
वैसे इसे प्राय: '' हिंदुस्तान '' भी कहा जाता है।
हमारा देश उस भारतीय उपमहाद्वीप का अंग है , जिसमें आजकल भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बंगलादेश, आदि देश समिमलित है। इनमें भारत देश विशालतम है। हमारे देश के आधुनिक नामों में " हिंदुस्तान " और " इंडिया " नामों की उत्पति सिन्धु शब्द से हुई है।
" ऋग्वेद " में " सिन्धु " उस महान नदी का नाम है। जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पशिचमी भाग (आधुनिक पशिचमी पाकिस्तान ) के भूगोल की सबसे बड़ी विशेषता रही है। इसीलिए विदेशी ईरानियो ने, जो प्रारम्भ में अविभाजित भारत के इसी भाग से परिचित हुए , इसे सिन्धु नाम दिया।
परन्तु प्राचीन ईरानी " स " का उच्चारण " ह " करते थे, इसीलिए उनकी भाषा में यह शब्द " सिन्धु " के स्थान पर " हिन्दू " हो गया। सुप्रथित साखामनीषी सम्राट प्रथम दारा (दारावहुश = डेरियस ) के समय " सिन्धु " अथवा " हिन्दू " नाम सिन्धु नदी के आसपास के जनपदों के लिए प्रयुक्त होता था।
हिन्दू शब्द से ही परवर्ती युगों में प्रचलित जातिवाचक नाम " हिन्दू " और उससे अफगानिस्तान और शक्स्थान की भांति " हिन्दुस्थान " अथवा " हिन्दुस्तान " नामों से प्रचलित हुआ।
ईरानियों से " हिन्दु " शब्द का ज्ञान यूनानियों को हुआ। चौथी-पाँचवी शताब्दी ईस्वी के यूनानी लेखकों ने " सिन्धु " के लिए " इंडोस " (Indos) शब्द के प्रयोग किया है।
इसमें अन्त का " स " प्रथमा के एकवचन का चिन्ह है | जैसा कि स्वयं संस्कृत के " सिन्धुस " शब्द में भी मिलता है। इसी शब्द से " इंडिका " (Indica) और " इंडिया " नाम निकले।
यूनानियों के समान चीनियों ने भी भारत के सिन्धु -हिन्दु नाम कि परम्परा को अपनाया। प्राचीन चीनी ग्रन्थों में भारत के दो नाम मिलते हैं। " तिएन-चू " और " इन-तु खो " अथवा " शिन-तु को "। इसमें " तिएन-चू " का अर्थ होता है, " देवताओं का देश "
इसका प्रयोग ईसा की प्राम्भिक श्ताब्दियोँ में मिलता है | इसके बाद " शिन-तु को " अथवा " इन-तु खो " नाम अधिक लोकप्रिय हो गया | इस नाम में " शिन-तु " अथवा " इन-तु " सिन्धु नाम के चीनी रूपान्तर है और " को " का अर्थ होता है देश।
हमारे देश को " हिन्दुस्तान " अथवा " इंडिया " नाम विदेशियों द्वारा दिए गये है। परन्तु " भारत " अथवा " भारतवर्ष " नाम की परम्परा विशुद्ध स्वदेशी है।
( ऋग्वेदिक काल में भरत आर्यों की एक प्रतापी शाखा का नाम था ) कहा जाता है कि पौरव वंश के सुप्रथित सम्राट दौ:षनिती भरत ने देश के विखरे हुये आर्य राज्यों को जीतकर चक्रवर्ती साम्राज्य स्थापित किया था। उसके उस साम्राज्य को उसके उतराधिकारियों ने चिरकाल तक स्थायी बनाये रखा, इसीलिए वे स्वयं और उनके शासन के अन्तर्गत रहने के कारण यह देश " भारत " नाम से विख्यात हुआ।
पौराणिक इतिहासकारों के विश्वास के अनुसार भरत के शासन में इस देश को राजनीतिक एकता प्राप्त हुई, इसीलिए उसका नाम भूमि के साथ संयुक्त हो जाना सर्वथा स्वभाविक था। " मत्स्य पुराण " में मनु को भरत कहा गया है। क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले धर्म और न्याय को मर्यादा बाँध कर प्रजाओं के भरण-पोषण की परम्परा प्रचलित की थी। इस व्यवस्था के अनुसार जिस प्रदेश में मनु की सन्तति ने निवास किया उसका नाम भारतवर्ष पड़ा।
बौद्ध ग्रन्थों में " भारतवर्ष " को प्राय: जम्बूद्वीप भी कहा गया है, परन्तु पुराणों में यह नाम एक विशालतर भौगोलिक ईकाई का है ,जिसका भारतवर्ष एक खण्ड मात्र है। इन ग्रन्थों के " भुवनकोष " नामक अध्यायों में मेरु (पामीर) को केन्द्र मानकर उसके उतर में उत्तरकुरु (साइबेरिया),पूर्व में भद्राशव (चीन), पश्चिम में केतुमाल (बैकिट्रया) और दक्षिण में भारतवर्ष , इन चार महाद्वीपों की कल्पना की गयी है। इन सबको समिमलित रूप से " जम्बूद्वीप " कहा गया है।
(" जम्बूद्वीप " में आधुनिक एशिया महाद्वीप के अधिकांश भाग को सम्मलित किया जा सकता है | )
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हिन्दू शब्द से ही परवर्ती युगों में प्रचलित जातिवाचक नाम " हिन्दू " और उससे अफगानिस्तान और शक्स्थान की भांति " हिन्दुस्थान " अथवा " हिन्दुस्तान " नामों से प्रचलित हुआ।
ईरानियों से " हिन्दु " शब्द का ज्ञान यूनानियों को हुआ। चौथी-पाँचवी शताब्दी ईस्वी के यूनानी लेखकों ने " सिन्धु " के लिए " इंडोस " (Indos) शब्द के प्रयोग किया है।
इसमें अन्त का " स " प्रथमा के एकवचन का चिन्ह है | जैसा कि स्वयं संस्कृत के " सिन्धुस " शब्द में भी मिलता है। इसी शब्द से " इंडिका " (Indica) और " इंडिया " नाम निकले।
यूनानियों के समान चीनियों ने भी भारत के सिन्धु -हिन्दु नाम कि परम्परा को अपनाया। प्राचीन चीनी ग्रन्थों में भारत के दो नाम मिलते हैं। " तिएन-चू " और " इन-तु खो " अथवा " शिन-तु को "। इसमें " तिएन-चू " का अर्थ होता है, " देवताओं का देश "
इसका प्रयोग ईसा की प्राम्भिक श्ताब्दियोँ में मिलता है | इसके बाद " शिन-तु को " अथवा " इन-तु खो " नाम अधिक लोकप्रिय हो गया | इस नाम में " शिन-तु " अथवा " इन-तु " सिन्धु नाम के चीनी रूपान्तर है और " को " का अर्थ होता है देश।
हमारे देश को " हिन्दुस्तान " अथवा " इंडिया " नाम विदेशियों द्वारा दिए गये है। परन्तु " भारत " अथवा " भारतवर्ष " नाम की परम्परा विशुद्ध स्वदेशी है।
( ऋग्वेदिक काल में भरत आर्यों की एक प्रतापी शाखा का नाम था ) कहा जाता है कि पौरव वंश के सुप्रथित सम्राट दौ:षनिती भरत ने देश के विखरे हुये आर्य राज्यों को जीतकर चक्रवर्ती साम्राज्य स्थापित किया था। उसके उस साम्राज्य को उसके उतराधिकारियों ने चिरकाल तक स्थायी बनाये रखा, इसीलिए वे स्वयं और उनके शासन के अन्तर्गत रहने के कारण यह देश " भारत " नाम से विख्यात हुआ।
पौराणिक इतिहासकारों के विश्वास के अनुसार भरत के शासन में इस देश को राजनीतिक एकता प्राप्त हुई, इसीलिए उसका नाम भूमि के साथ संयुक्त हो जाना सर्वथा स्वभाविक था। " मत्स्य पुराण " में मनु को भरत कहा गया है। क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले धर्म और न्याय को मर्यादा बाँध कर प्रजाओं के भरण-पोषण की परम्परा प्रचलित की थी। इस व्यवस्था के अनुसार जिस प्रदेश में मनु की सन्तति ने निवास किया उसका नाम भारतवर्ष पड़ा।
बौद्ध ग्रन्थों में " भारतवर्ष " को प्राय: जम्बूद्वीप भी कहा गया है, परन्तु पुराणों में यह नाम एक विशालतर भौगोलिक ईकाई का है ,जिसका भारतवर्ष एक खण्ड मात्र है। इन ग्रन्थों के " भुवनकोष " नामक अध्यायों में मेरु (पामीर) को केन्द्र मानकर उसके उतर में उत्तरकुरु (साइबेरिया),पूर्व में भद्राशव (चीन), पश्चिम में केतुमाल (बैकिट्रया) और दक्षिण में भारतवर्ष , इन चार महाद्वीपों की कल्पना की गयी है। इन सबको समिमलित रूप से " जम्बूद्वीप " कहा गया है।
(" जम्बूद्वीप " में आधुनिक एशिया महाद्वीप के अधिकांश भाग को सम्मलित किया जा सकता है | )
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