ज़िंदगी का सबसे दुःखद सत्य क्या है? 3



हम चीजों से प्यार इंसानो का इस्तेमाल कर रहे हैं वास्तव में
  उल्टा होना था ( चीजों का इस्तेमाल इंसानो से प्यार ) ।
हम मोबाइल को अपने मेहमान से अधिक मान्यता देते हैं।
भगवान से डरते हैं पर पाप को नहीं छोड़ते।
दुनिया में भरोसा करनेवालों की संख्या घटती जा रही है। क्योंकि
जहाँ भरोसा होता है, वहीं पे धोखा होता है ।
हम मूल्यों के नहीं (अधिकतर लोग ) पैसों के पीछे पड़े हैं ।
गरीब जितना तेज से और भी गरीब होता जाता है ,अमीर
उससे दुगना तेज से और भी अमीर बनता जा रहा है। सच है
दुनिया पैसेवालों की होने जा रही है जो खतरनाक साबित होगा।
हम जितना हो सके उतना विभाजन में बंटते जा रहे हैं। जो एकता
के लिए घातक सिध्द होगा। उदाहरण के लिए -

इंसान से भारतीय ,जापानी ,चीनी , अमेरिकन आदि। फिर
भारतीय में से कन्नड लोग तमिलियन आदि। फिर
हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई आदि। फिर
हिन्दू में से बौद्ध जैन सिख आदि ।
जैन में से वज्रयान हीनयान, और बाकी में से जाटो, रेड्डी ,कम्मा कापू आदि। फिर उनमे से कांग्रेस भाजपा आदि।
मुस्लिम में भी सुन्नी शिया आदि । फिर
सुन्नी में से हनफ़ी ,हम्बली ,मालिकी आदि।
उनमे से फिर कई जमातें।
सच है कि हम जितना हो सके उतना बँटे जा रहे हैं जो विनाश के लिए खुद हम ही तैयारी कर रहे हैं ।
और बहुत हैं। ज़िंदगी का सबसे दुःखद सत्य इससे बड़ा क्या हो सकता है।

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