रावण का वध !



रावण !! कल तक वह कितना शक्तिशाली था, अत्याचार की आंधी उसने ऐसी चलाई, की पूरे विश्व से सनातनियो का नाशः कर उसने रक्ष धर्म की स्थापना कर दी ! केवल आर्यवत शेष था , जो सनातनी देश बचा हुआ था ! जम्बूदीप के भी कई प्रदेश रावण के अत्याचार से तंग आकर रक्षधर्मी बन गए थे । अपने पूरे जीवन मे रावण ने रावण ने केवल जनता को लूटा ओर सोने की लंका खड़ी कर ली !

उसी रावण को  चुनोती देने के लिए 25 साल का नोजवान युवक राजकुमार राम महल छोड़ साधारण लोगो के बीच क्रांति के बीज बो रहा था ! अपनी सेना वो तैयार कर चुके थे, लेकिन राम की सेना इतनी भी मजबूत नही थी, की वह  रावण का मुकाबला कर सके ! हां , हनुमान ओर अंगद जैसे महावीर राम की सेना में थे, किन्तु रावण का नाशः कर पाना, इतना सरल नही था !

मेघनाथ कब वध का समाचार रावण को मिला ... रावण को लगा जैसे उसके स्वास अभी रुक जाएंगे ! ऐसा क्रोध आया कि अभी खड्ग उठाकर सीता की हत्या कर दे !

लेकिन सीता का वध ? अगर रावण सीता का मोह ही त्याग पाता, तो आज युद्ध की यह नोबत ही क्यो आती ?  सीता ही ना रही, तो राम से युद्ध कैसा ? राम मनोन्दरी का हरण करने तो आ नही रहे । नही !! सीता को जीना पड़ेगा ! जब तक राम और रावण में एक भी व्यक्ति जीवित है, सीता को जीवित रहना ही होगा !

ओर रावण को ... उसे लड़ना होगा, सीता तो उसे इस युद्ध के बाद ही मिलेगी ! सीता जैसी विश्वसुंदरी से युद्ध ना हो, यह कैसे संभव है ? यदि  मैं राम से पंचवटी में ही लड़ लेता, तो अपने ही भाई-बंधुओ के वध की यह स्तिथि नही आती !!  इन बुद्धिजीवियों ने मुझे डुबोया है। मुझे इनका परामर्श मानना ही नही चाहिए था ।

प्रतिरावण हंस उठा !! तू लड़ेगा रावण ? राम  से ? तू युद्ध को टालता नही आया है रावण, तू राम से डरता आया है । यदि तू राम से भयभीत नही होता, तो क्यो अपने पुत्रों , भाइयो, मंत्रियों को भेजता रहता ? स्वम् क्यो नही गया राम से लड़ने ? राम का वय कम है, वह फुर्तीला है, उसमे ऊर्जा है, उसका शारीरिक बल, शस्त्र कौशल, वीरता तुमसे कहीं अधिक है .... तू अब बूढ़ा हो चला है  रावण ... थोड़ी ही देर में तेरा दम फूल जाता है, लेकिन राम अब भी वैसा ही योद्धा है, जैसा वह पंचवटी में था । पंचवटी के युद्ध के बाद राम कुछ विकट ही हुआ होगा, कम नही हुआ !
रावण में पुनः वापस जागकर अपने मंत्रियों को बुलावा भेजा ! उनसे कहा, आज या तो राम और लक्ष्मण का वध करके लौटेंगे, या केवल उनका रथ आज लंका में लौटेगा !
मंत्रियों में युद्ध को लेकर अब कोई उत्साह नही था !
तुम सब युद्ध करना नही चाहते !! रावण की भोहे तन गयी !
युद्ध !! मंत्री ने रावण की ओर देखा ! हम तो युद्ध ही चाहते है, किन्तु सेना ?
क्यो सेना को क्या हुआ है ? रावण क्रुद्ध हो उठा ! क्या लंका की सेना युद्ध नही करना चाहती ?
नही !! सेना युद्ध के लिए मना नही के रही ! लेकिन हमारे पास अब सेना है ही कहाँ ?
हमारे असंख्य सेनिको ने वीरगति पायी है ! असंख्य सैनिक चिकित्सालय में पड़े है ।
रावण उठकर खड़ा हो गया ....यह सब मुझे पहले बताया क्यो नही गया ?
आपको कौन बताता लंकेश !! आप कटु सुनना ही नही चाहते ! ओर इसमे बताने की क्या बात है ? यह तो समझने की बात है ! प्रत्येक पराजित सेना की यही स्तिथि होती है ।
क्या वास्तव में यह स्तिथि है, हमारे पास इतने विस्फोटक हथियार अभी भी है, की जो पूरे संसार को जला कर भस्म कर दे !
महाराज !! लेकिन एक कटु यह भी है, की कई सैनिक भाग खड़े हुए है !
अर्थात सेना  का परित्याग !! रावण की आंखे लाल हो उठी ! उन सबको मृत्युदण्ड दिया जाएगा !
मृत्युदंड देगा कौन महाराज !! महापार्श्व मंत्री कुछ दुःसाहसी हो गया ! अभी हमारे पास लंका की रक्षा करने को पर्याप्त सैनिक नही है ! ओट अभी तो यह सूचना भी मिली है, की सामर्थवान लोग लंका छोड़कर यहां से पलायन भी कर रहे है ।
रावण क्रोधित होकर बोला !! तुम लोग अपनी इच्छा या अनिच्छा प्रकट करो !!
हम तो रक्त की अंतिम बूंद तक युद्ध करेंगे लंकेश !!
तो , फिर आओ ! रावण बोला ... " बचे खुशे सेनिको को साथ लेकर जाओ, ओर लंका के एक एक घर से सक्षम शरीर वाले युवकों को बलात सैनिक कर्म के लिए घसीट लाओ ! आपत्ति अथवा विरोध करने वालो को मृत्युदंड दो । सभी सेनिको को दिव्यास्त्र दो !
कल का सूर्यास्त राम ओट लक्षमण के वध के साथ ही होना चाहिए !
क्या समय था ! कोई समय था, जब रावण की ओर से युद्ध का आह्वाहन पाकर लंका के हर घर के दरवाजे खुल जाते थे !! प्रत्येक घर से युवक निकल निकल कर महाराज लंकेश की जय बोलते थे ! पहले बात कुछ और थी ! युद्ध मे जाने वाला सैनिक यही सोचता था, की वह सकुशल विजयी होकर ही वापस लौटेगा , ओर साधारण जनता को लूटकर अनेक धन भी अपने साथ लाएगा ! भाग्य ने साथ दिया , तो दो- चार सुंदर स्त्रिया लाना भी बड़ा काम नही था ! किंतु अब स्तिथि बिल्कुल भिन्न थी ! युद्ध मे जाने वाला प्रत्येक सैनिक जानता था, की वह म्रत्यु के मुख में समाने जा रहा है ।
सैनिक संचय के लिए जा रहे अधिकारियों को लंका के प्रत्येक द्वार पर प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था । न युवक केवल स्वम् आना चाहते थे, बल्कि उनकी माता, पत्नियां, बहने, कभी कभी तो उनके बच्चे  तक उनसे लिपत जाते थे । आज सेना में अधिकांश सैनिक डरा धमकाकर लाये गए थे । रावण की जय कहने वाले परिवार आज रावण को कोष रहे थे ।
बूढ़ी महिलाए आज सुपर्णखा को कोष रही थी । स्वम् पट्टमहिषी मंदोदरी को यह कहते सुना गया था  की " हाय  !! माँ के उदर में ही क्यो नही मर गई यह सुपर्णखा - कुटिला, कुलक्षणा, अमंगला ! लंका का प्रत्येक नागरिक रावण को कोष रहा था ! कि स्वम् तो डूबा, हमारे घर के चिरागों को भी ले डूबा !!
सेना युद्ध के लिए जा तो रही थी, लेकिन इस सेना में कोई उत्साह नही था ! गाजो- बाजो का जो आडम्बर हुआ करता था, आज वह भी नही था !! रावण को भय लग रहा था, कहीं ये कायर डर के मारे शत्रु सेना में ना जा मिले !
जो भी हो रावण के आगे राम की स्तिथि अब भी उसकी तुलना में कमजोर ही थी ! सेना का अभाव राम के पास भी था ! इसलिए राम की सहायता के लिए इंद्र भी कल माँ दुर्गा के पास मदद मांगने गया था !  इंद्र को रावण का पुत्र मेघनाथ एक बार पराजित कर चुका था, इंद्र में इतना साहस नही था कि वह स्वम् राम की सहायता के लिए चला जाये, ओर राम की सहायता करनी इसलिए आवश्यक थी, की यदि राम पराजित हुआ, तो रावण सीधे इंद्रलोक पर हमला करेगा !!
इंद्र मा दुर्गा के पास गया ! उस समय महादेव वहां नही थे !
भगवती ने मुस्कुराकर इंद्र की ओर देखा ! " आओ कायरराज !! आज इंद्राणी को साथ लेकर कैसे चले आये ! आने का प्रयोजन राजनीतिक तो नही है ?
इंद्र कुछ संकुचित हुआ ! मेघनाथ से पराजित होने के बाद भगवती उसे कायरराज ही कहती थी । यह संबोधन इंद्र को अच्छा नही लगता था , किन्तु इसके माध्यम से जो भाव भगवती प्रकट करती थी, वह सदैव इंद्र को प्रिय था ! इस उपालंभ में भगवती का स्नेह झलकता था !
प्रयोजन तो राजनीतिक ही है माँ ! इंद्र बोला ! किन्तु शचि को पारिवारिक सद्भावना की आड़ बनाये रखने के लिए साथ लाया हूँ ।
कूटनीति !! दुर्गा हंसी !! एक तो शचि की उपस्थिति में महादेव अधिक कठोर नही हो सकेंगे ! और दूसरे मुझे माँ कह रहे हो ... पुरुष अपने स्वार्थ साधन के लिए स्त्री की भावनाओ के साथ कैसे कैसे खिलवाड़ करता है !!
इंद्र हंसा ! अपनी भावना व्यक्त करने के लिए आपकों माँ कहा है देवी !! आपकी उम्र का बोध करवाने के लिए नही !!
दुर्गा खुलकर हंसी !! चतुर हो बहुत !! किन्तु आज तुम्हारा यह कूटनीतिक अभियान सफल नही हो पायेगा ! महादेव आज घर पर नही है !
किन्तु माँ ! मुझे महादेव से नही, आपसे काम था !
दुर्गा नव स्थिर द्रष्टि से इंद्र को देखा ! देवराज को मुझसे क्या काम है ? मेरी तो कोई राजनीति नही है !!
इसीलिए काम आपसे ही है !!
कहो !!
लंका में राम कर रावण का युद्ध हो रहा है !
मुझे मालूम है !! दुर्गा बोली !!
आपको तो मालूम होगी ही, आप राजनीति मे हो ना हो, सारी सूचना आप तक हमेशा रहती है । इंद्र मुस्कुराया ... आप जानती ही होगी, की यहीक असम युद्ध है ! सैनिक दृष्टि से राम कमजोर है, ओर रावण के सिर पर स्वम् महादेव का हाथ है ।
मुझे मालूम है ! दुर्गा बोली " इसमे शिकायत का अवसर कहाँ है ? राम की शक्ति कमजोर है, तो क्या सभी आर्य राजाओ को संगठित होकर रावण के विरुद्ध लड़ने से महादेव ने मना किया था ? क्या महादेव का हाथ आर्य राजाओ के सिर पर नही है ?

माँ ! आप सत्य है, आर्य संगठित होकर नही लड़े ! लेकिन आज रावण का सामना करने राम वहां लड़ रहा है ! रावण  ने सीता जैसी असंख्य नारियों का अपहरण, हत्याएं, बलात्कार, राक्षसी शक्तियों का प्रचार -- क्या महादेव शिव का उद्देश्य संसार को इस ओर धकेलना था ?  क्या महादेव ने रावण को शस्त्र इसलिए दिए थे कि वह शक्ति से सम्पन्न होकर मित्र राजाओ की हत्या करें ? स्त्रियों का अपहरण और बलात्कार करें !  महादेव शिव क्या इन्ही तत्वों को प्रोत्साहित करना चाहते है ?

देवराज !! यदि सत्य का बल राम में है, तो वह डरता क्यो है ? दुर्गा बोली, साहस कर वह लड़ता क्यो नही ?
इंद्र ने कहा, क्या बात कह रही हो माँ! कौन कहता है कि राम डरता है ? अपनी समस्त देव शक्तियों के साथ भी इंद्र जिस  रावण से डरता है, राम भालू, बंदरो की सेना लेकर उसी रावण से युद्ध कर रहा है ! इंद्र को जो चाहे कह लो माँ , लेकिन  राम को कायर ना कहो !!
यदि राम डरता नही, तो तुम्हे क्यो मेरे पास भेजता ?

राम ने मुझे नही भेजा माँ! राम का तो प्रण है कि इंद्र से आमना सामना होते ही वह इंद्र का वध कर देगा, अहिल्या अपराध के कारण !  मैं तो राम की सहायता करने से भी डरता हूँ, कहीं वह इंद्र की सहायता अस्वीकार ना कर दे ।
भगवती की आंखों में पहली बार प्रसन्नता का उजाला हुआ ! " राम ने तुमसे सहायता की भीख नही मांगी ?
नही माँ!!
तो तुम उसकी सहायता क्यो करना चाहते हो ?
रावण के नाशः के बिना देवशक्तियों का प्रसार नही हो सकता माँ!
ओर अगर रावण की हत्या के बाद राम अत्याचारी हो उठा तो ?
नही !! में कोई ज्योतिष तो नही हूँ माँ! किन्तु इतना अवश्य कह सकता हूँ कि राम कभी अत्याचारी नही हो सकता !
क्यो ?
उसे सत्ता का मोह नही है ।
प्रमाण ?
वह अयोध्या को त्यागकर आया है ! निषादों का राज्य राम ने स्वीकार नही किया ! किशिकन्धा का राज्य उसने सुग्रीव को दे दिया ! लंका के सिंहासन पर वह पहले ही विभीषण का अभिषेक कर चुका है !!
राज्य का प्रलोभन उसे नही है ! दुर्गा मन ही मन आनंद के रस का पान करती रही ! तो फिर वह युद्ध कर क्यो रहा है ?
न्याय के लिए माँ !
तो तुम चिंता मत करो !! यह युद्ध राम ही जीतेगा ! " न्याय के लिए लड़ने वाला कभी हारता नही !
माँ ! युद्ध शास्त्रों से नही, शस्त्रो से जीते जाते है । रावण के पास महादेव शिव की सम्पूर्ण शक्ति हो, तो न्याय कैसे जीतेगा ?

युद्ध शस्त्रो से नही , आत्मबल से जीते जाते है देवराज !! दुर्गा का स्वर कठोर था !! तुम अपना रथ ओर दिव्यास्त्र राम तक पहुंचा दो, ओर बीच से हट जाओ !
लेकिन अगर महादेव इस युद्ध मे कूद पड़े तो ?
उन्हें में नही आने दूंगी !  तुम बीच मे हस्तक्षेप मत करना, महादेव भी तटस्थ रहेंगे ! चाहे रावण जीते या हारे !
यहां युद्ध भूमि पर राम और रावण आमने सामने होने वाले थे । वानर सेना राक्षसी सेना को लील रही थी । कोई योद्धा रावण की सहायता को नही बचा था ।  वानर सेना उन्हें घेरती जा रही थी ! किन्तु रावण इस टिड्डी दल के आगे मरने को तैयार नही था ।

राम के धनुष से बाणों की झड़ी लग गयी !! रावण अपने सारथी ओर घोड़ो के अभाव में तनिक हिल भी नही पा रहा था । रथ उसके लिए सुविधा के स्थान और संकट का साधन बन गया ।
राम की सहायता करने इंद्र का रथ भी आ गया, ओर इंद्र का सारथी मालती !
राम इस कहा, इंद्र मेरी सहायता क्यो कर रहा है ? मेरा उससे कोई मैत्री सम्बन्ध नही है । और रथ का मैं करूँगा भी क्या, मेरे पास कोई सारथी नही है ।
मैं हूँ न सारथी ! मालति ने कहा !!

रावण मालति को देखते ही पहचान गया ! मन ही मन सोचा, कितना घृणित शत्रु है इंद्र ! आज तक मुझसे युद्ध का साहस नही कर सका, ओर आज इस घोर विपदा में मेरे गंभीर शत्रु को  रथ ओर शस्त्र पहुंचा दिए !
बहुत लंबे समय तक राम और रावण में लगातार युद्ध चलता रहा !  सहसा  राम का एक भयानक नाराच रावण के वक्ष में जाकर लगा, रावण का धनुष उसके हाथों से छूट गया ! रथ का दंड पकड़कर वह बैठ गया ।
सारथी रावण का रथ लेकर वहां से भाग निकला !
कुछ समय बाद रावण की चेतना लौटी !!
प्रतिरावण जोर जोर से हंस रहा था । " तू युद्ध से भाग आया कायर "
रावण से सारथी को डांटा ! मूर्ख !! कहाँ भगाए लिए जा रहा है तू ?
महाराज !! आपकी रक्षा !!
किसकी रक्षा ? रावण बोला ! " मेरे यश को नष्ठ कर , मुझे कलंकित करना चाहता है ? शत्रुओं से उत्कोच लिया है तूने क्या ?
राजाधिराज !!
लौट वापस !!
रावण पुनः लौटकर राम के सम्मुख आ गया ! राम के पहले ही बाण ने उनकी ध्वजा नष्ठ कर दी । किन्तु रावण अब कोई प्रतिक्रिया नही दे रहा था ! शरीर के प्रत्येक अंग से रक्त बह रहा था !
दूसरी ओर राम का पूरा शरीर भी रक्त स्नान कर चुका था, कई गंभीर घाव राम को भी रावण ने दिए !   राम ने यह तीर इतने बल से चलाया, की शायद यही अंतिम तीर राम चला पाए, उसके बाद इतना रक्त बह जाने की वजह से कहीं भूमि पर ही ना गिर पड़े !!
यह तीर जाकर सीधा रावण के कंठ पर लगा !!लगे हाथ ही एक ओर तीर रावण के उदर पर मारा गया ! रथ से लुढ़ककर रावण भूमि पर आ गिरा !!
पूरा विश्व स्तब्ध रह गया !! इतिहास बदल चुका था, नए युग का आगमन था !! आज संघर्ष और न्याय की पुनः विजय हुई !!
विश्वविजेता रावण पूरी दुनिया को जीतकर आ रहा था, लेकिन भारतीयों के आगे सम्पूर्ण विजय का उसका स्वपन, स्वपन बनकर ही रह गया !!

✍ राम पुरोहित

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