इतिहास के बारे में क्यों जाने ?




बहुत से व्यक्तियों की यह धारणा है ,की इतिहास के अध्ययन से हमे क्या लाभ ? 

अतीत में जो हुआ वह बीत गया उसे पढना समय का दुरुपयोग है। 

कुछ लोग कहते है हुए होंगे पूर्वज ऐसे पर आज के सन्दर्भ में इस का क्या उपयोग? 

आर्थिक युग है सो समय पैसे कमाने में लगाओ। 

अत: यह विचारणीय बिंदु है कि इतिहास के अध्ययन व मनन से कोई लाभ है या नही।

इतिहास के अध्ययन से हमे ज्ञात होता है कि हमारे पूर्वजो ने क्या -क्या महान कार्य किये ,वे इतने महान कैसे हुए और उनकी इस महानता का रहस्य क्या था। 

इस से यह चेतना उत्पन होती है की फिर उन के पद चिन्हों पर चल कर मैं क्यों न प्रभावशाली व महान बनने का प्रयत्न करूं।

रामायण ,महाभारत ,गीता आदि सभी ग्रन्थ भी इतिहास ही तो हैं। महान विद्वानों की जीवनिया भी इतिहासिक ग्रन्थ ही हैं , जिन से हम प्रेरणा लेने की बात करते हैं। भगवान महावीर और चोबिसों तीर्थंकरों की जीवनी व उपदेश ,भगवान बुद्ध की जीवनी व उनके भ्रमण स्थल व उपदेश ,सिख गुरुओं की वाणी उनके कार्यकलाप ,उनके बलिदान इतिहास के अंग ही तो हैं।

इसीलिए जब व्यक्ति को अपने कुल गोरव व वंश परम्परा का ज्ञान होता है तो वह घृणित कार्य करने से पहले ,कोई भी ओछी हरकत करने से पहले सोचेगा जरुर। उसकी आत्मा उसको गलत काम ,मर्यादा विहित आचरण की आज्ञा नही देगी। ऐसे अनेक उधाहर्ण हैं जब देश व धर्म के लिए प्राण उत्सर्ग करने का समय आया तो इसी इतिहास के ज्ञान व वंश के गोरव ने आसन्न मृत्यु के समय भी रण विमुख नही होने दिया।

लार्ड मैकाले का कहना था " जिस जाति को गिरना हो या मिटाना हो उसका इतिहास नष्ट कर दो,वह जाती स्वयम ही मिट जायेगी। " यह ठीक भी है, जिस जाती या व्यक्ति को अपने पूर्वजो के इतिहास का भान व गर्व नही होता वे निचे गिरने से कैसे बच सकते है। शक ,सीथियन व हूण इस देश में आये पर उन्हें अपने पूर्व पुरषों का ज्ञान खत्म हो गया और आज उनका कोई नामो निशान भी बाकी नही है। दूर क्यों जाये ,आमेर पर मीणो का अधिकार था।  कछवाहो ने मीणों को  सत्ता च्युत कर आमेर पर कब्ज़ा कर लिया। उसके बाद उन्हें अपने शासक होने का बोध खत्म हो गया व आज वे अनुसूचित जन जाती में शामिल हो गये।

ठा. सुरजन सिंह जी झाझड ने अपनी पुस्तक "राव शेखा " की प्रस्तावना में लिखा है -"इतिहास इस सत्य का साक्षि है कि गिरकर पुन: उठने वाली जातियों व राष्ट्रों ने सदैव अपने अतीत से  चेतना व प्रेरणा ग्रहण की है। जिस जाति और राष्ट्र का अतीत महान है ,उसका भविष्य महान होने की कल्पना आसानी से की जा सकती
है। राष्ट्र के अतीत की झांकी उसके इतिहास में मिलती है। इतिहास के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी अपने पूर्वजों के महान कार्यों का मुल्यांकन कर सकता है। जिस जाति अथवा राष्ट्र के पास अपना इतिहास नही ,वः दरिद्र है या यों कहिये कि उसके पास अपने पूर्वजों की संचित निधि नही है। उसके लिए अपनी सभ्यता ,संस्कृति और पूर्वजों पर अभिमान करने के लिए कोई आधार नही। अत: राष्ट्रिय जन जीवन में इतिहास की अनिवार्यता शाश्वत सत्य के रूप में विद्यमान है एवं रहेगी। "
इसी पुस्तक की समीक्षा करते हुए डा.कन्हैया लाल जी सहल ने लिखा - "स्मरण शक्ति खो जाने पर जो हालत किसी व्यक्ति की होती है ,वही  हालत उस राष्ट्र की होती है ,जिसके पास अपना इतिहास नही। मेरी दृष्टी में किसी देश की स्मरण शक्ति का नाम ही इतिहास है। शेखाजी का इतिहास शेखावाटी की स्मरण शक्ति का ही नाम है। "

स्वामी विवेकानंद जी ने 23 जून 1894 ई. को शिकागो से एक पत्र राजा अजीत सिंह जी खेतड़ी को लिखा उसमे इतिहास की अनिवार्यता व महत्व को उन्होंने इन शब्दों में व्यक्त किया है -" जिस दिन भारत संतान अपने अतीत की कीर्ति कथा को भुला देगी ,उसी दिन उसकी उन्नति का मार्ग बंद हो जायेगा। पूर्वजों के अतीत पूण्य कर्म आने वाली संतान को सुकर्म की शिक्षा देने के लिए अत्यंत सुंदर उद्धाह्र्ण है। जो चला गया वही  भविष्य में आगे आवेगा। "

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