आलोचना से अंत या आरम्भ !



कर्महीन जीवन दया का पात्र होता है और कर्म आधारित जीवन आलोचना का शिकार बनता है अब इन दो धाराओ में कोनसे पथ पर अग्रसर होया जाए पर इस सवाल का जवाब गहन चिंतन और लोगो से विचारविमर्श करने के बाद भी नही मिला रहा है आपके पास कोई जवाब हो तो जरूर अवगत कराना आलोचना क्यों होती है या लोग क्यों करते है मानव के अस्तित्व और इतिहास पर नजर दौड़ाये तो पता चलता है की विचारो में विभेद होने के कारण सैकडो देश हजारो जातियो और लाखो भाषाओ का सर्जन हुआ लेकिन इन सबके आरम्भ होने का कारण सायद आलोचना ही रही होगी क्योकि आलोचना से मतभेद शुरू हुए होंगे और उसके बाद मनभेद और फिर उसकी परिणीति में लोगो का पलायन के बाद आज के वर्तमान का अस्तित्व उभरा है यह सब सही हुआ या गलत यह तो काल के गर्भ में समा गया हम वर्तमान से आगे बढ़ते है तो पाते जब कोई हमारी सोच के अनुसार कार्य करता है तो प्रशंशा के गीत गाये जाते है और भुलवंश ही अपनी सोच से कुछ कार्य करता है तो 10 प्रतिशत लोगो की वाणी जहर से भरी कर्कश आवाज रावण की पूजा करती दिखलायी देती है सायद वो कुंठित है क्योकि कोई परिवार से परेशांन है कोई व्यापार में फसा हुआ है कोई नोकरी की जिम्मेदारी से दबा है वो भी आपकी तरह कुछ करना चाहते है लेकिन वो इन सब कारणों के कारण कुछ कर नही पाते है फिर मन को सांत्वना देने के लिए आलोचना का सहारा लेते है लेकिन आपको खुश होना चाहिए क्योकि जो आपकी आलोचना करते है आप उनके दिमाग में है और जो प्रशंशा करते है उनके आप  दिल में है इसका मतलब आप लोगो के शरीर में  ही है और आप कुछ कर रहे है इसलिए आपकी बात हो रही है अब जो कुंठित है वो जल्दी हार्ट सर्जन के पास जाए क्योकि उनको हार्ट अटेक की बीमारी होने वाली है इसलिए अपने जीवन को अपने तरीके से जीते रहे और लोगो की सेवा करते रहे कर्मत्व आपको निराश नही करेगा।
✍ प्रवीण सिंह आगोर

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