चीतल और सूअर में फर्क होता है।


आजकल अजीब चलन है। सूअर जैसे बदन में औरतें चीतल की खाल लपेट हिरण दिखने की कोशिश कर रहीं हैं। और अजीब लगती हैं, जैसे बलून में किसी ने ठूंस-ठूंस कर मांस भर दिया हो। मांस के सवा टन के लोथड़े में दो टांगे घुसेड़ दी गयी हो।
लेगिंग्स और टाईट ऐसी कि पिछवाड़े की नसें भी साफ-साफ उभर जाऐं और कुर्ती बस कमर पर अटकी हो। ये फैशन है! फैशन तो सुंदर दिखने के लिए होता है। हर पहनावे के लिए उसके मुताबिक शरीर का गठन होना चाहिए। या शरीर के गठन के मुताबिक हो पहनावा। उसे कहते हैं फैशन। देह बुरके से छांपे रहने लायक है और पहन लेना है जीन्स। लगता है जैसे बोरे में भैंस ठुंसी चली आ रही है।
घोड़ी के पिछवाड़े और टांग, और सूअर के पिछवाड़े और टांग में... बड़ा फर्क होता है। घोड़ी देखकर, सूअर भी घोड़ी की तरह चलने लगे तो और भी अश्लील लगने लगता है।
हमारे मोहल्ले में एक औरत ऐसा टी शर्ट और टाइट पहन के निकलती है ऐसे कि उसकी वजानल क्रीज और दरार तक साफ साफ उभर आता है। और मुंह खोलती है तो लगता है इतिहास में ही बसी है अभी। तो ये आजादी नहीं ओछापन है।
सेक्सी दिखने के लिए सेक्स अपील तो होना चाहिए ना यार। नंगा ही होना है तो ढंग से हो लो, कुछ तो हो सेक्स अपील।
समाज से सऊर का तो बोध ही खतम हो गया है।
पर है तो है... नारीक्रांति जो है।
ऐसा नहीं कि मर्द, कोई सुदर्शन और कामदेव दिखते हैं। वो भी ऐसी औरतों को चुनौती देने में लगे हैं। कमीज से पेट बाहर आने को बेचैन। जरा सा आगे झुकेंगे तो पूरी पैंट कमर से नीचे आ जाती है और काला पिछवाड़ा नंगा हो जाता है। एकदम वाहियात और ओछा और अश्लील हो जाता है माहौल। और अजीब है कि ऐसे हरामखोरों को कोई फर्क नहीं पड़ता, ना ही उसके साथ चलती औरतों को।
पूरे सौंदर्य बोध की पुंगी बजा रखी है
इन तरक्की पसंद आजाद लोगों ने।

✍ लेखक-आनन्द के कृष्ण।

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